क्यों आज नन्ही सी कली
खिलने से पहले मुरझा रही
क्यों आज जन्म पूर्व ही
वो काल से भेंट कर रही
क्यों आज उसके अपने ही
शत्रु उसके बनते जा रहे
गर जीत जाये वो जंग ये
तो सांसारिक गिध्द ही
आज उसको खा रहे
मिष्ठान पर पिपीलिका से
क्यों आज उसपे मंडरा रहे
क्यों आज नन्ही सी कली
खिलने पहले मुरझा रही
जब साथ देना हो उसका तो सामाजिक ठेकेदार भी
मूक बधिर होते जा रहे
घटित घृणित कर्म पश्चात
किस बात की मोमबत्तियां
वे चौक पे जला रहे
किस बात के इंतिजार में
खामोश बैठे हम हुए है
आज फिर रौशन समां की
जिम्मेदारी हम पे आरही
समाज के एक ध्रुव को
बचाने की हम पे आ गयी
उस नन्ही सी कली कओ
खिलने का अवसर जो मिला
सर्वश्य को वो महकाए गी
मौका जो उसको ये मिला
संसार बदल वो जायेगी
हमारे थोड़े से साहस से
वो नन्ही सी कली फिर से
घर आँगन को महकाएगी
(अनुभव तिवारी)

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