मेरे एक मित्र है, मित्र ही नहीं घनिष्ठ भी है। हाँ ये बात और है क़ि मेरी मित्रता से ज्यादा उन्हें धूम्रपान से प्यार है। आजकल हम सभी लोग नशे के शिकार हो रहे है। कभी आदमी शिकार करने में माहिर था,आज शिकार बनने में मजा आता है। धूम्रपान दिखने में तो उस पहाड़ जैसा है जो दूर से तो हर भरा दिखता है मगर पास से देखने पर पता चलता है की उसकी गोद में अनगिनत खतरे मुह उठाये हम जैसे आसान शिकार की ताक में बैठे है। हम लोग भले ही अपने नाम के विपरीत काम करते हो मगर प्रकृति की बाकी सारी चीजे अपने नाम के अनुरूप ही काम करती है। हमारा शरीर अंगो का एक गुट है और गुटखा उस गुट को धीरे धीरे बड़े चाव से खाता है।
      मेरे एक और मित्र से मैंने कहा की वो गुटखा खाना बंद कर दे तो जवाब मिला की जब बाजार में बिकती है तो खाने में क्या हर्ज है। मैंने कहा खाना बंद कर दो, उत्पादन बंद हो जायेगा फिर बाजार में बिकना भी बंद हो जायेगा। दो टूक शब्दों में जवाब मिला उत्पादन बन्द करा दो हम खाना बंद कर देंगे। कोई खुद पहल करना नहीं चाहता। सब चाहते है पहले कोई और आगे आये। कोई और बस कोई और, हम खुद नहीं।
    वैसे हम चर्चा तो अपने मित्र की कर रहे थे। उन्होंने एक दिन मुझसे कहा क़ि भाई आज से मैंने तुम्हारे लिए धूम्रपान बंद कर दिया है, दुर्भाग्य से वो मेरा जन्मदिन था। मुझे ख़ुशी हुई थी की उसने मुझे वो तोहफा दिया है जो आजकल होता तो हर एक दोस्त के पास है मगर देना कोई नहीं चाहता। कुछ दिनों बाद मेरी उनसे फिर मुलाकात हुई तो पता चला की वो आज भी धूम्रपान नामक कसाई से हलाल होने को लालायित है। मैंने वजह पूछी तो बताया की डिप्रेशन और वर्क लोड मतलब काम का बोझ।
डिप्रेशन नाम के खेत में दो तरह की फसले उगती है एक कौरव और दूसरी पांडव। दो तरह की विचारधाराओ को जन्म देता है ये डिप्रेशन, एक सकारात्मक और एक नकारात्मक। ये एक आदमी को सोना बनाता है तो दूसरे को मिट्टी।
आज किसी को मना करो तो वो कहते है की एक दिन मरना तो सबको है तो क्यों न सारे सुखो को भोग लिया जाए। मै भी कह देता हूँ की भाई तुम ज्यादा जीने के हक़दार भी नहीं हो। शायद कुछ लोग अब हमसे नफरत भी करे मगर हमे इन लोगो ने ही सिखाया है की किसी को गलत रास्ते में जाने से मना करने से अच्छा है की उसे उस रास्ते का अनुभव लेने में मदद की जाए।
उच्चवर्गीय लोग नशे में अपनी शान खोजते है और निम्न तथा मध्यमवर्गीय लोग अपनी शान्ति। कुछ लोगो का मानना ये भी है की नशे से आलस्य दूर होता है। वो मानते तो यूँ है जैसे विज्ञान के बहुत पेचीदा सवाल पर शोध कर रहे हो। नशा एक दिन तो आलस्य को धोखा दे सकता है मगर फिर उसे भी इसकी आदत लग जाती है। जब आलस्य आदमी जैसी चीज को घेरकर मार सकता है फिर ये धूम्रपान क्या बला है। आजकल तो आलस्य धूम्रपान करना सीख भी चूका है क़ि कही किसी को घेरते समय उसे नींद न आ जाए। आदमी की संगत में हमेशा रहा है तो आदमी जैसा ही सोचेगा ना। संगत का असर ऐसा होता है, आलस्य भी न बच सका। आलस्य तभी सो सकता है जब हम नींद से जग जाए। कोई भी नशा आलस्य और नकारात्मक विचारो का शिकार नही कर सकता।
    मेरे मित्र की बातो से उस दिन मुझे पता चला की नशा उसका पहला मित्र है। मुझे एहसास हुआ की डिप्रेशन और वर्क लोड मनुष्यता के नए शिकारी है और बड़े आराम से ये लोगो का शिकार कर रहे है।
    मेरे मित्र महोदय एक दिन मेरे साथ मेरे घर गए। बात खाने की चली तो माँ ने उनसे पूछा क़ि बेटा खाने में क्या पसंद करोगे। मैंने उन्हें अवगत कराया की ये नास्ते में अपने फेफड़े खा चुके है, दोपहर क खाने में खुद का गुर्दा खाना पसंद करेंगे और रात की फिक्र आप ना करे, शायद रात में खाने की इन्हें जरुरत न पड़े।

“आलोक”

@j

Advertisement