एक नादान परिंदा
उड़ने को है आतुर।
दूर आसमान में
बंदिशों से परे
लेकर कुछ ख्वाब अपने
जहान की सैर पर
आँखों में उम्मीद की लौ
लेकर दिल में उमंगें कई
एक नादान परिंदा
उड़ने को है आतुर।
है धुन में अपनी खोये हुए सब
सारी दुनिया भूलकर
खोजने को अपनी कोई बस्ती
ये बेरंग दुनिया छोड़कर
एक नादान परिंदा
उड़ने को है आतुर।
घर में रुकने का जतन
वो कर चुका है बहुत
है ये हसरत उड़ चलूँ
मैं पंख अपने खोलकर
थामकर सपनो का दामन
सारे बंधन तोड़कर
एक नादान परिंदा
उड़ने को है आतुर।
@j
Solid likha hai Jo bhi likha hai …….
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Thanks bhai…
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