जागा हूँ बाद मुद्दत के
मैं एक रात लम्बी
आई है बाद तुम्हारी यादों के
इन आँखों में एक बरसात लम्बी।
है गुफ्तगू बहुत बाकी
करने को तुमसे
है इंतजार, ठहर जाये जो कोई
अपनी मुलाकात लम्बी।
बांध रखा था सामान
सजा रखे थे कई मंजिलो के सपने
थी खबर कभी इसकी मुझको
दो कदम साथ चलने के बाद
ठहर जाओगे तुम भी।
न जाओ दूर इतना
जरा सा पास आ जाओ
मैं रखकर कन्धों पर तुम्हारे सर
गुजारूं एक रात लम्बी।
तुम्हारा हँसता हुआ चेहरा
भरकर के इन आँखों में
मैं सो सकूँ तुम्हारी गोद में
लेकर एक साँस लम्बी।

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